आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास
आत्म-सम्मान से हमारा तात्पर्य है हमारे बारे में अपने विचार। यह हमारी अपनी क्षमताओं, गुणों और उपलब्धियों के बारे में हमारा मूल्यांकन है। जब हम अपने बारे में सकारात्मक रूप से सोचते हैं, तो हमारा आत्म-सम्मान बढ़ता है। दूसरी ओर, जब हम अपने बारे में नकारात्मक रूप से सोचते हैं, तो हमारा आत्म-सम्मान कम हो जाता है।
आत्म-विश्वास हमारी अपनी क्षमताओं पर विश्वास करने की हमारी क्षमता है। जब हमारा आत्म-सम्मान बढ़ता है, तो हमारा आत्म-विश्वास भी बढ़ता है। हम अपनी क्षमताओं पर और अधिक विश्वास करने लगते हैं और अपने लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश में अधिक प्रयास करने लगते हैं।
जब हमारा आत्म-सम्मान कम होता है, तो हमारा आत्म-विश्वास भी कमजोर हो जाता है। हम अपनी क्षमताओं और उपलब्धियों पर सवाल उठाने लगते हैं और अपने लक्ष्यों को हासिल करने में हिचकिचाने लगते हैं। इस तरह, आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास दोनों एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं और इनका संतुलन बहुत महत्वपूर्ण है।
आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास के विकास में बाल्यकाल का बहुत बड़ा योगदान होता है। यदि माता-पिता अपने बच्चों की उपलब्धियों की सराहना करते हैं और उनकी क्षमताओं पर विश्वास दिखाते हैं, तो उनका आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास बढ़ता है। उन्हें अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रेरणा मिलती है।
दूसरी ओर, यदि माता-पिता अपने बच्चों की उपलब्धियों को कम महत्व देते हैं या उनकी क्षमताओं पर सवाल उठाते हैं, तो उनका आत्म-सम्मान गिरने लगता है। वे खुद को कमजोर महसूस करने लगते हैं और अपने लक्ष्यों को हासिल करने से डरने लगते हैं।
वयस्क जीवन में भी, हमारे आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास पर हमारे साथियों, सहकर्मियों और परिचितों का बड़ा प्रभाव पड़ता है। अगर वे हमारी उपलब्धियों की सराहना करते हैं और हम पर भरोसा दिखाते हैं, तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। लेकिन यदि वे हमारी क्षमताओं पर सवाल उठाते हैं या हमारी गलतियों को ज़ोर-शोर से बताते हैं, तो हमारा आत्म-सम्मान कमज़ोर होने लगता है।
हालांकि, हमारा आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास हमारे ऊपर निर्भर करने वालों पर भी निर्भर नहीं करता है। हमारा मूल्यांकन खुद हमारे भीतर ही निहित होता है, इसलिए हम सकारात्मक सोच विकसित करके अ