आत्म-सम्मान (सेल्फ-एस्टीम)
आत्म-सम्मान (सेल्फ-एस्टीम) व्यक्ति द्वारा अपने बारे में सोचने और महसूस करने का तरीका है। यह व्यक्ति की खुद के मूल्य की अवधारणा और उसे खुद के बारे में कैसा महसूस करने की क्षमता है।
जब कोई व्यक्ति अपने बारे में सकारात्मक रूप से सोचता है और अपनी क्षमताओं और उपलब्धियों की सराहना करता है, तो उसे बढ़िया आत्म-सम्मान होता है। इसके विपरीत, जब कोई व्यक्ति अपने बारे में नकारात्मक रूप से सोचता है और अपनी कमियों को ज्यादा तरसता है, तो उसे कम आत्म-सम्मान होता है।
आत्म-सम्मान एक व्यक्ति की सोच और भावनाओं से संबंधित है जो उसके व्यवहार पर भी प्रभाव डाल सकता है। जब लोग अपने बारे में सकारात्मक रूप से सोचते हैं तो वे अधिक उत्साही, सफल और खुश महसूस करते हैं। इसके विपरीत, कम आत्म-सम्मान वाले लोग अक्सर अवसादी, डरे हुए और निराशावादी होते हैं।
आत्म-सम्मान का स्तर उम्र, लिंग, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और अन्य कारकों पर निर्भर करता है। हालांकि, यह एक लंबी अवधि के भीतर बदल सकता है क्योंकि जीवन अनुभवों से हमारी आत्म-छवि गहराई से प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, एक बच्चे में वयस्कता में आत्म-सम्मान में बदलाव हो सकता है।
आत्म-सम्मान के मुख्य स्रोत हैं:
माता-पिता से प्रेम और स्नेह: जब बच्चों को माता-पिता से प्यार और स्वीकृति मिलती है, तो उनमें बेहतर आत्म-सम्मान विकसित होता है।
सफलताएं: जब लोग अपने काम और उपलब्धियों में सफल होते हैं तो उनका आत्म-सम्मान बढ़ता है।
सहयोगी संबंध: बेहतर दोस्तों और साथियों से सहयोग भी आत्म-सम्मान को बढ़ाता है।
आत्म-स्वीकृति: अपने कमजोरियों को स्वीकार करना और सकारात्मक बने रहना भी महत्वपूर्ण है।
आत्म-विकास: अपनी क्षमताओं और गुणों का विकास करना आत्म-सम्मान को बढ़ाता है।
आत्म-सम्मान की कमी से निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं:
अवसाद — कम आत्म-सम्मान वाले लोग अक्सर अवसाद से ग्रस्त रहते हैं।
चिंता और डर — वे अपनी क्षमताओं पर संदेह करते हैं और डरते हैं।
निराशा — वे अपने लक्ष्यों को हासिल करने में विफल रहते हैं।
आत्म-संदेह — वे सतत अपनी क्षमताओं पर सवाल उठाते रहते हैं।
कम मेहनत — वे अपने प्रयासों में कमी आने देते हैं।
आक्रामक व्यवहार — कभी-कभी वे आक्रामक भी हो जाते हैं।
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